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श्री गणेश आरती संग्रह हिन्‍दी । Shri Ganesh aarti collection

श्री गणेश की कई आरतीयां आज कल प्रचलन में हैं यहां हम आपके लिए सबसे प्रचलित जय गणेश, जय गणेश देवा और सुखकर्ता दुखहर्ता आरती का संग्रह लेकर आए हैं। अन्‍य आरतीयां भी संबधित लेखों के साथ संलग्‍न रहेंगी

श्रीगणेश आरती 1  

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।

एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,

माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।

पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,

लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।।

 .. जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।

सूरश्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा.. माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।

कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।

श्रीगणेश आरती 2  

सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची,

नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची,

 सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची,

 कंठी झलके माल मुक्ता फलांची।

जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव

जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ति

दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ती।

 जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव

रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा

चंदनाची उटी कुमकुम केशरा

हीरे जड़ित मुकुट शोभतो बरा

रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया।

 जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव

जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ति दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ती।

जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव

लम्बोदर पीताम्बर फणिवर बंधना

सरल सोंड वक्र तुंड त्रिनयना

दास रामाचा वाट पाहे सदना

संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुर वर वंदना।

जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव

जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ति दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ती। जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव ।।

श्रीगणेश आरती 3  

गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरैं।

तीन लोक के सकल देवता, द्वार खड़े नित अर्ज करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा

रिद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजें, अरु आनन्द सों चमर करैं।

धूप-दीप अरू लिए आरती भक्त खड़े जयकार करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा

गुड़ के मोदक भोग लगत हैं मूषक वाहन चढ्या सरैं।

सौम्य रूप को देख गणपति के विघ्न भाग जा दूर परैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा

भादो मास अरु शुक्ल चतुर्थी दिन दोपारा दूर परैं।

लियो जन्म गणपति प्रभु जी दुर्गा मन आनन्द भरैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा

अद्भुत बाजा बजा इन्द्र का देव बंधु सब गान करैं।

श्री शंकर के आनन्द उपज्या नाम सुन्यो सब विघ्न टरैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा

आनि विधाता बैठे आसन, इन्द्र अप्सरा नृत्य करैं।

देख वेद ब्रह्मा जी जाको विघ्न विनाशक नाम धरैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा

एकदन्त गजवदन विनायक त्रिनयन रूप अनूप धरैं।

पगथंभा सा उदर पुष्ट है देव चन्द्रमा हास्य करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा

दे शराप श्री चन्द्रदेव को कलाहीन तत्काल करैं।

चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज्य करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा

उठि प्रभात जप करैं ध्यान कोई ताके कारज सर्व सरैं।

पूजा काल आरती गावैं ताके शिर यश छत्र फिरैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा

गणपति की पूजा पहले करने से काम सभी निर्विघ्न सरैं।

सभी भक्त गणपति जी के हाथ जोड़कर स्तुति करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा…।

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